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छात्रों की नैसर्गिकता और सोचने की क्षमता समाप्त कर रहे हैं ये फैले कोचिंग के जाल

छात्रों की नैसर्गिकता और सोचने की क्षमता समाप्त कर रहे हैं ये फैले कोचिंग के जाल
@HelloBanswara - -

August 10, 2018 मित्रों अगर इतिहास में जाएँ तो हमारे गुरुकुल परंपरा में भारी बस्ता और ज्यादा लिखने का परंपरा नहीं था अतः गुरुकुल में छात्र एकाग्र होकर सुनते थे और उसको समझने के बाद वह बात उनके मानस पटल पर सदा के लिए अंकित हो जाता है । मैकाले नीति के बाद परंपरा बदल गया जैसे जैसे बस्ता मोटा होता गया वैसे सोचने की क्षमता समाप्त होती गई। अब हमारे यहाँ के दो महत्वपूर्ण IIT और NEET प्रवेश परीक्षा की बात करते हैं उसी की क्योँ किसी भी परीक्षा की बात करते हैं। क्या होता है उसमें ? परीक्षा इसलिए होता है कि छात्र खुद से सोच के अपने टेक्स्ट बुक के ज्ञान के आधार पर प्रश्न हल करें जिससे उनके तार्किक क्षमता का अनुमान लगाया जाए लेकिन यहाँ पर होता क्या है ?

किसी भी तरीके के जितने प्रश्न हो सकते है हम छात्र को कोचिंग में पढ़ा देते हैं, सच कहूँ तो हम बच्चों को पढ़ाते नहीं हैं उन्हें प्रोग्राम्ड करते हैं कि इस तरह का प्रॉब्लम आए तो उसे इस प्रकार से सॉल्व करना और इस तरह की आए तो ऐसे। प्रोग्राम्ड बच्चा बिल्कुल इन्सट्रक्सन के अनुसार काम करता है और विभिन्न श्रेष्ठ संस्थान में पास हो जाता है और अब छात्र की आदत प्रोग्राम्ड होने की लग गई है वो हर जगह प्रोग्राम्ड ही होना चाहता है खुद का दिमाग प्रयोग ,सोचने की क्षमता बंद कर देता है ,इस तरह हम एक बुद्धिजीवी छात्र और नागरिक बनाने के बजाए एक अच्छा मशीन बनाते हैं जिसके अंदर कुछ भी सॉफ्टवेयर डाला जा सकता है लेकिन वो खुद से कुछ स्टार्ट करने में असफल होता है ।

अब आप ही देखें हमारे यहां से गूगल के CEO, माइक्रोसॉफ्ट के CEO आदि निकलते है पर ऐसी कंपनी के फाउंडर नहीं निकलते बड़े संस्थान से। ऐसा इसलिए होता है क्योंकी CEO होना प्रोग्राम्ड मशीन होने जैसा है जो इंस्ट्रक्शन को फॉलो करता है और फाउंडर होने के लिए खुद की नैसर्गिक सोच चाहिए जो हम नष्ट कर देते हैं।

यूरोप या अन्य जगहों से पढ़कर आए अनेक छात्रो से मिला हूँ जिनमे कुछ सोशल मीडिया के माध्यम वो संपर्क में आएं हैं उन छात्रों की जानकारी हमारे यहाँ के छात्रों से काफा कम होती है पर वो खुद उनके द्वारा सोच कर अर्जित किया होता है, नैसर्गिक होता है उसमें, किसी क्लास में प्रोग्राम्ड नहीं किया गया होता है इसलिए वहाँ के बच्चे अभी उतना नहीं जानते पर कॉलेज में उसके बाद ज्यादा ग्रो करते हैं क्योंकि उनके पास खुद की सोचने की क्षमता होती है और हमारे यहां के छात्रों में यह क्षमता स्कूल समाप्त होते होते कोचिंग और स्कूलों द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। बच्चे खुद से सोचना बंद कर देते हर एक प्रश्न के लिए वो पूर्णतः शिक्षक पर आश्रित होते हैं ।

सच कहूँ तो IAS हो या IIT या NEET उसमें छात्र नहीं पास होता वो कोचिंग संस्थान ही बार- बार पास होता है जो छात्रों के दिमाग में प्रोग्रामिंग करता है ।

अगर भारत बचाना है तो कोचिंग और स्कूल के टीचिंग ट्रेंड को बदलना होगा। ये टीचिंग या एजुकेशन हमें विकसीत नहीं अपाहिच बना रहा है ।

लक्ष्मीकांत तिवारी
 

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